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फूला हुआ - Bloated


वर्ष 2019 का समय था। उस समय मेरी उम्र लगभग साढे़ तेरह साल के आसपास थी। अप्रैल महीने में मेरा दाखिला नौवीं कक्षा में श्रीतिज स्मारक उच्च विद्यालय में हुआ। जो सियालजोरी नामक गाँव में स्थित था। मेरे स्कूल यूनिफॉर्म में एक ब्लेजर फुलपेन्ट था। जिसे पहनने में मुझे अच्छा नहीं लगता था। जिसके कारण मैंने पिताजी से कई बार कहा कि एक काले कपड़ों का फुलपेन्ट बनवा दीजिए। उच्च विद्यालय में ब्लेजर का फुलपेन्ट पहनकर साईकिल की सीट पर बैठता तो फुलपेन्ट थोड़ी नीचे हो जाती और चड्डी दिखने लगती। जिसे देखकर कई सारे लड़के-लड़कियां हँसने लगती। में फुलपेन्ट को ऊपर उठा लेता। कुछ दिनों बाद पिताजी ने एक काले कपड़े का फुलपेन्ट सिलवा दिया। जो ढीला-ढाला और बड़ा था। में ब्लेजर के फूलपेन्ट से मुक्त तो हो गया। परंतु अब समस्या शुरु होने वाली थी। में उस काले कपड़े के फुलपेन्ट को पहनकर उच्च विद्यालय जाने लगा। धीरे-धीरे वक्त बीतता गया। एक दिन एक विद्यार्थी की नजर मेरे काले फुलपेन्ट पर पड़ी। मैं बैंच पर बैठा हुआ था। उस विद्यार्थी ने देखा। मेरे फुलपेन्ट का एक हिस्सा फूला हुआ दिखाई दे रहा है। यह बात धीरे-धीरे पूरे विद्यालय में फैल गयी। जो देखता वह हँस देता। एक दिन बैंच पर बैठे हुए मैंने अपनी फुलपेन्ट पर नजर दौड़ाई तो में लज्जित महसूस करने लगा। फुलपेन्ट फूला हुआ था और देखने पर ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो गुप्त अंग उत्तेजित हो गया हो। पर ऐसा नहीं था। बैठने पर फूला हुआ दिखाई देता और खड़े होने पर फूला गायब हो जाता। साईकिल पर बैठने पर भी वहीं फुला हुआ प्रकट हो जाता। अब सफेद फुलपेन्ट को पहनना अच्छा लगता था और काले फुलपेन्ट को पहनने में उदासी सी महसूस होती थी। फुली हुई बात गाँवभर में फैल गयी। लोग उस फूले हुए हिस्से को देखकर मुझे पागल और न जाने क्या-क्या सोचने लगते। अब ट्यूशन भी में अधिकतर सफेद फुलपेन्ट ही पहनकर जाने लगा। एक बार ऐसा लगा कि कैंची से फुलपेन्ट को काटकर फिर से सिलाई कर दू। परंतु मैंने ऐसा नहीं किया। क्योंकि फुलपेन्ट खराब हो सकता था। फूली हुई बात शिक्षकों के कानों में पड़ी और उन्होनें देखा तो उन्हें लगा कि इस लड़के के गुप्त अंग में कोई बीमारी होगी। कुछ महीने बीत गए। अब में दसवीं कक्षा में पहुंच चुका था। दिन पर दिन बीतते गए। एक दिन मुझे इस समस्या का एक समाधान सुझा। मैंने फुलपेन्ट के उस हिस्से के थोड़े नीचे पर सिलाई कर दिया। जिसके बाद मुझे इस समस्या से छुटकारा मिला।

लघु कहानीकार 
पंकज मोदक

The year 2019 was the time. At that time I was about thirteen and a half years old. In the month of April, I got admission in 9th class in Shritij Smarak High School. Which was situated in a village named Sialjori. My school uniform consisted of a blazer full pant. I didn't like wearing it. Because of which I told my father many times to get a full pant of black clothes made. In high school, wearing a blazer full pant and sitting on the seat of a bicycle, the full pant would have come down a little and the tights would have been visible. Seeing which many boys and girls started laughing. I would have lifted the fullpant up. After a few days, father stitched a full pant of black cloth. Which was loose and big. At least I got rid of the flower pants of the blazer. But now the trouble was about to begin. I started going to high school wearing that black cloth full pant. Time passed slowly. One day a student's eyes fell on my black flower pants. I was sitting on the bench. That student saw. A part of my fullpant is visible swollen. This thing gradually spread in the whole school. Whoever sees it laughs. One day while sitting on the bench, I looked at my full pant and felt ashamed. The full pant was bloated and it appeared as if the private part was excited. But it was not so. The bloating would appear on sitting and the bloating would disappear on standing. Even sitting on a bicycle, he would appear bloated there. Now I used to like wearing white flower pants and felt sad to wear black flower pants. The inflated talk spread throughout the village. On seeing that bloated part, people used to think me crazy and don't know what. Now in tuitions too, most of them started wearing white full pant. Once it felt like cutting the full pant with scissors and stitching it again. But I didn't do that. Because the full paint could have gone bad. The bloated talk came to the ears of the teachers and when they saw it, they felt that there would be some disease in the private part of this boy. Few months passed. Now I had reached class X. Day after day passed. One day suggest me a solution to this problem. I stitched just below that part of the full pant. After which I got rid of this problem.

Short story writer
Pankaj Modak 

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अनजान गांव - Unknown Village

सुनिदा जो कुछ दिनों पहले नयी शिक्षिका बनी। उसके खुशी का ठिकाना न था। वह बेहद खुश थी। परंतु वह जिस विद्यालय में नियुक्त हुई। वह शहर से काफी दूर था। दूसरे दिन। वह अपने पिता का आशीर्वाद लेकर निकल ही रही थी कि उसके पिता ने कहा - बेटी कुछ छुट्टे रूपये ले जाओं। तुम्हारे काम आएंगे। सुनिदा ने कहा - पिताजी बाहर किसी से छुट्टे रूपये ले लुंगी। उसके बाद वह घर से बाहर निकल गई। वह बस स्टॉप की ओर बढ़ने लगी। कुछ देर बाद वह बस स्टॉप के पास पहुंची। उसने बस पकड़ी और विद्यालय की ओर चल पड़ी। उस विद्यालय के पहले एक अनजान गांव पड़ता हैं। जब सुनिदा ने विद्यालय का नाम स्मार्टफोन के नक्शे पर सर्च किया तो वह आ गया। परंतु विद्यालय से थोड़ी दूर पर स्थित उस अनजान गांव के बारे में नक्शे पर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी या शायद किसी ने जानकारी नहीं छोड़ी थी। यह देखकर उसे थोड़ा आश्चर्य हुआ। कुछ घण्टे बाद वह बस उस गांव से गुजरने लगीं। सुनिदा ने खिड़की से बाहर झांककर देखा तो उसे थोड़ी घबराहट हुई। उस गांव में कोई दुकान न थी। बाहर बैठे लोग सुनिदा को ही देखें जा रहे थे। जैसै- उन लोगों की नजरें सिर्फ़ सुनिदा पर ही टिकी हुई हो।

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