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कपूर का प्रभाव - Effect Of Camphor


मेरे पिताजी जिनका नाम शंकर था। उनका जन्म भारत देश के एक छोटे से गाँव चन्दाहा मे हुआ था। शंकर जी के पिताजी विजय जी बी. सी.सी.एल में कार्यरत थे। शंकर जी जब बारह वर्ष के थे। विजय जी नशे में धुत होकर आते और शंकर जी के माताजी सुमु देवी को काफी मारते-पीटते। यह देखकर शंकर जी उदास हो जाते थे। शंकर जी का एक दोस्त है- जिसका नाम नारायण था। वे एक ही कक्षा में थे और एक साथ पढ़ाई करते थे । उन्होंने 16 वर्ष की उम्र में 10वीं पास की। उस समय चन्दाहा गाँव में गाड़ी की सम्भावना ना के बराबर थीं । उन दोनों ने, चास नामक प्रखंड के एक कॉलेज में नामांकण कराया। कॉलेज में कार्य पड़ने पर उन दोनों को 15 किलोमीटर पैदल चलकर वहाँ पहुँचन पड़ता था। शंकर जी के पाँच बहनें थीं। जो उनसे उम्र में बड़ी थी। उस समय चन्दाहा के आस-पास कोई कॉलेज न था। गाँव में बेलगाड़ी की सुविधा थी । परंतु उतने दूर न जाती थी। उन्होनें 18 वर्ष की उम्र में 12वीं की की परीक्षा उत्तीर्ण किया। अब वे दोनों पटना के एक विश्वविद्यालय में बी० ए० का नामांकण कराये । शंकर जी के पिताजी कभी - कबार ही काम पर जाया करते थे। बाकि दिन नशे में धुत रहते थे । इसलिए वे बहुत ही कम वेतन लेकर घर में आते थे। घर का गुजारा चलना मुश्किल होता था। घर की आर्थिक स्थिती को देखते हुए उन्हें अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी। वे लगभग बी० ए० पार्ट 2 तक पढ़ाई कर चुके थे । शंकर जी अब नौकरी की तलाश में इधर-उधर फिर रहे थे । एक दिन शंकर जी को पता चला कि कोई चयनकर्ता कंसटेबल भर्ती कर रहा है। शंकर जी चयनकर्ता के पास पहुँचें। चयन कूर्ता ने कहा- भर्ती के लिए आपको 50 हजार भरने पड़ेगे। शंकरजी के पास उतने पैसे तो नहीं थे । इसलिए उन्हें वह नौकरी न मिली। शंकर जी अब कोयले बेचने का कार्य करने लगे । कड़ी धूप में खाधान से कोयला साईकिल पर लादकर लाना और फिर उसे बेचना । काफी मुश्किल का काम था। 21 वर्ष की उम्र में शंकर जी की शादी ललिता नामक एक लड़की से हुई। अब शंकर जी ने कोयले का काम छोड़कर मछली बेचने का कार्य करने लगे । एक दिन कुछ मछुआरों ने बाबू ग्राम के तालाब से मछलियाँ चोरी कर ली। उस दिन कुछ लोग सड़क पर आते जाते मछली बेचने वाले को पकड़ने के लिए सड़क पर खड़े थे । उस समय शंकर जी उस रास्ते से जा रहे थे। लोगों ने उन्हें रोका। लोग उन्हें गाली देने लगे, डाँटने लगे। शंकर जी ने कुछ नहीं किया था। फिर भी वे सब सुन रहे थे। उसके बाद उन्होंने मछली बेचने का काम छोड़कर, कुछ इकट्ठे किए हुए रुपयों से एक हार्डवेयर की दुकान खोली । वे कभी - कबार मेलों में जाकर छोले भी बेचा करते थे। नो महीने बाद उनकी पत्नी ने एक बच्चे को जन्म दिया। परंतु बीमारी के चलते वह बच्चा बच न सका और वह मृत्यु को प्राप्त हो गया। इसी तरह दूसरा बच्चा भी बीमारी के चलते बच न सका। उसके बाद उनके घर एक बेटी हुई। और उसके बाद और तीन बेटे हुए। एक दिन शंकर जी को पेचिस की बीमारी हो गई । उन्होनें कुछ बजुर्गों से सुना था कि कपूर का सेवन करने से पेचीस रोग ठीक हो जाता है। शंकर जी ने अपना साईकिल लिया और कपूर खरीदने के लिए जान नामक दुकान की ओर निकल पड़े। वे दुकान पर पहुँचे। उन्होंनें एक कपूर खरीदा और घर की ओर चल पड़े। उन्होंने घर पहुँचकर कपूर का सेवन कर लिया । कुछ देर बाद वे जोर-जोर से घर के सामने वाले रास्ते पर कूदने लगे । सभी लोग और उनके घरवाले सब देख रहे थे। कपूर का प्रभाव इतना तेज था कि शंकर जी सह नहीं पा रहे थे । सभी लोग और घरवाले सोच रहे थे कि उनके भीतर कोई भूत तो नहीं घूस गया । कुछ देर बाद कपूर का प्रभाव कम हुआ। शंकर जी सामान्य अवस्था में आ गये। सभी लोग और घरवाले उनसे पूछने लगे-आपको क्या हुआ था ? शंकर जी ने सारी बात बताई । तब सभी को पता चला कि यह भूत का नहीं कपूर का प्रभाव था।

लघु कहानीकार
पंकज मोदक

My father's name was Shankar. He was born in a small village Chandaha in India. Shankar's father Vijay Worked in B.C.C.L . When Shankar was twelve years old. Vijay ji would come drunk and beat up Shankar ji's mother Sumu Devi a lot. Seeing this, Shankar ji used to get sad. Shankar ji has a friend- whose name was Narayan. They were in the same class and studied together. He passed 10th at the age of 16. At that time the prospect of a vehicle in Chandaha village was negligible. Both of them enrolled in a college in the block called Chas. While working in college, both of them had to reach there after walking 15 kilometers. Shankar ji had five sisters. who was older than him. At that time there was no college near Chandaha. The village had the facility of Belcari. But it did not go that far. He passed the 12th examination at the age of 18. Now both of them get enrolled in a university in Patna for B.A. Shankar ji's father used to go to work only occasionally. The rest of the day he was drunk. That's why he used to come home with very little salary. It was difficult to survive at home. Due to the financial condition of the house, he had to leave his studies. He had studied almost till B.A. Part 2. Shankar ji was now wandering here and there in search of a job. One day Shankar ji came to know that some selector was recruiting constable. Shankar ji approaches the selector. Selection Kurta said – You will have to fill 50 thousand for recruitment. Shankarji did not have that much money. That's why he didn't get that job. Shankar ji now started doing the work of selling coal. Loading coal from food grains on cycles in harsh sunlight and then selling it. It was a very difficult task. At the age of 21, Shankar ji was married to a girl named Lalita. Now Shankar ji left the work of coal and started selling fish. One day in Babugram village some fishermen stole fish from the pond of Babugram. On that day some people were standing on the road to catch the fish seller while coming on the road. At that time Shankar ji was on his way. People stopped him. People started abusing him, scolding him. Shankar ji had done nothing. Yet they were all listening. After that he left the job of selling fish and opened a hardware shop with some money collected. He also used to sell chickpeas occasionally by going to fairs. After nine months his wife gave birth to a child. But due to illness, the child could not survive and he died. Similarly, the second child also could not survive due to illness. After that a daughter was born to them and after that three more sons were born. One day Shankar ji got dysentery. He had heard from some elders that consuming camphor cures dysentery. Shankar ji took his cycle and left for a shop called Jaan to buy camphor. They reached the shop. He bought a camphor and headed home. He consumed camphor after reaching home. After sometime they started jumping loudly on the road in front of the house. Everyone and their family members were watching. camphor's influence was so strong that Shankar ji could not bear it. All the people and the family members were thinking that there was no ghost inside them. After some time, camphor's influence diminished. Shankar ji came back to normalcy. All the people and the family members started asking him – what happened to you? Shankar ji told everything. Then everyone came to know that it was camphor's influence and not Bhoot's.

Short story writer
Pankaj Modak 

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अनजान गांव - Unknown Village

सुनिदा जो कुछ दिनों पहले नयी शिक्षिका बनी। उसके खुशी का ठिकाना न था। वह बेहद खुश थी। परंतु वह जिस विद्यालय में नियुक्त हुई। वह शहर से काफी दूर था। दूसरे दिन। वह अपने पिता का आशीर्वाद लेकर निकल ही रही थी कि उसके पिता ने कहा - बेटी कुछ छुट्टे रूपये ले जाओं। तुम्हारे काम आएंगे। सुनिदा ने कहा - पिताजी बाहर किसी से छुट्टे रूपये ले लुंगी। उसके बाद वह घर से बाहर निकल गई। वह बस स्टॉप की ओर बढ़ने लगी। कुछ देर बाद वह बस स्टॉप के पास पहुंची। उसने बस पकड़ी और विद्यालय की ओर चल पड़ी। उस विद्यालय के पहले एक अनजान गांव पड़ता हैं। जब सुनिदा ने विद्यालय का नाम स्मार्टफोन के नक्शे पर सर्च किया तो वह आ गया। परंतु विद्यालय से थोड़ी दूर पर स्थित उस अनजान गांव के बारे में नक्शे पर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी या शायद किसी ने जानकारी नहीं छोड़ी थी। यह देखकर उसे थोड़ा आश्चर्य हुआ। कुछ घण्टे बाद वह बस उस गांव से गुजरने लगीं। सुनिदा ने खिड़की से बाहर झांककर देखा तो उसे थोड़ी घबराहट हुई। उस गांव में कोई दुकान न थी। बाहर बैठे लोग सुनिदा को ही देखें जा रहे थे। जैसै- उन लोगों की नजरें सिर्फ़ सुनिदा पर ही टिकी हुई हो।

विलुप्त जीव - Extinct Creatures

पृथ्वी पर हरियाली छाई हुई थी। रोज की तरह लोग अपने‌ काम में जा रहे थे, आ रहे थे। एक दिन प्रसिद्ध विज्ञान संस्था ने एक रिपोर्ट जारी की। जिसमें लिखा था - पेड़ों की संख्या हर वर्ष कम होती जा रही है। जिससे ओजोन परत की क्षति, वायू प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग की समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। इसलिए आपसे अनुरोध है कि पेड़ अधिक से अधिक लगाएं और मनुष्य जीवन को बचाएं। इस रिपोर्ट को पढ़ने के बाद बहुत लोगों ने इसे झूठ समझकर भूल गए, तो कुछ लोगों ने इसे सच मानकर थोड़े डर गए। कुछ दिनों बाद एक व्यक्ति अपनी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग कर रहा था। उसने वह रिपोर्ट पढ़ी। उसने मनुष्य जीवन की अच्छाई के लिए कुछ करने की सोची। वह प्रतिदिन एक पेड़ को रोपता। पानी देता और उस पौधे को देखकर उसका मन खुशी से खिल उठता। वह वर्ष में एक बार जगह-जगह जाकर पर्यावरण को बढ़ावा देने, वायू प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण और जल प्रदूषण को कम करने, पॉलीथिन बैग का इस्तेमाल कम करने के बारे में लोगों को जागरूक करने की कोशिश करता। एक रात उस व्यक्ति के मन में एक ख्याल आया कि क्यों न चिड़ियाघरों में पिंजरों में बंद जीव-जंतुओं को आजाद किया जाए। ज