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घर पहुॅंचने की आस (Hope To Reach Home)


एक वाहन में सवार होकर एक ड्राईवर एक बारह या तेरह वर्ष का लड़का और लड़के का बड़ा भाई और बड़े भाई का एक दोस्त। जिसका यह वाहन था। वे उस वाहन पर सवार होकर एक शादी में दावत खाने जा रहे थे। रात का समय था। कुछ घण्टों बाद वे शादी में पहुँच गए। वे सब दावत खाने के बाद शादी में कुछ देर टहलते रहे। उसके बाद वे वाहन पर सवार होकर घर की ओर जाने लगे। कुछ दूरी तय करने के बाद वाहन रूक गई। शायद वाहन में कुछ खराबी आ गई थी। कुछ देर बाद सुबह होने वाली थी। अभी रात के साढ़े चार बज रहे थे। सब वाहन से नीचे उतरे। ड्राईवर ने वाहन को कुछ देर तक देखा और वाहन को ठीक करने की कोशिश करने लगा। परंतु वह वाहन को ठीक न कर सका और मैकेनिक को ढूँढने लगा। कुछ देर बाद सुबह हो गई। ड्राईवर उस वाहन के पास आया और कहा- मुझे मैकेनिक न मिला। वे सब इधर-उधर देखने लगे। वे एक गाँव में थे जहाँ पर सन्नाट पसरा हुआ था। गाँव में कई सारे झोपड़ी बने हुए थे। परंतु उनके अलावा उस गाँव में कोई ओर मनुष्य न था। एक झोपड़ी के पास एक खाॅंट पड़ी हुई थी। उन्होंने खाँट को उठाया और उस खाँट पर वह लड़का और उसके भाई का दोस्त बैठ गया। वाहन पर शराब और एक बड़े डिब्बे में पेट्रोल रखा हुआ था। लड़के के बड़े भाई ने छुपकर बोतलों में मौजूद शराब को एक के बाद एक गटकने लगा। ड्राईवर ने देखा तो उसने भी कुछ शराब पी ली। लड़के का बड़ा भाई नशे में धूत होकर कपड़ों को उतारने लगा और जाँघिया पहना हुआ झोपड़ी के दीवार के सामने जाकर लेट गया। ड्राईवर भी वहीं पर जाकर सो गया। मानों उन्हें घर जाने की कुछ फिक्र ही न हो। गर्मी के मौसम के कारण धूप काफी तेज थी। चारों तरफ धूप फैली हुई और गर्म हवाएँ चल रही थी। वाहन के मालिक यानि लड़के के बड़े भाई के दोस्त को बड़ा क्रोध आ रहा था। क्रोध को वे नियंत्रित न कर सकें और क्रोधावश वाहन पर मौजूद पेट्रोल को निकालकर उनपर आग लगा दी। लड़का यह देखकर घबरा उठा और वह वहां से भागा। वह भागता रहा जब तक वह वहाँ से दूर न निकल गया। उधर आग लगने की वजह से उन दोनों ने तड़प-तड़पकर अपना दम तोड़ दिया। वाहन का मालिक खटियाँ पर जैसे ही बैठने लगा कि एक जहरीले सांप ने उसे डस लिया। वाहन का मालिक यहाँ से भागने की कोशिश करने लगा। परंतु उसका पैर एक पत्थर से जा टकराया। अपने आप को संभालने की कोशिश में उसने झूल रही एक नंगी तार को पकड़ लिया। जिसके बाद हाई वोल्ट करंट की वजह से कुछ ही समय बाद उसके प्राण सूख गये। वह लड़का रुकता और फिर भागता, फिर रुकता फिर भागता। ऐसा करते-करते वह एक शहर में जा पहुंचा। साँसे तेज चल रही थी। वह थक चुका था और घर का रास्ता भी भूल चुका था। वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया और इधर-उधर डरा-सहमा सा देखने लगा। काफी समय बीत गया। उस लड़के ने पेड़ पर चढ़कर रात बिताई। सुबह हुई। चिड़ियों और वाहनों की आवाजें आने लगी। वह नींद से उठा। उसे तेज भूख लगी थी। पर उसके पास न खाना था और न ही धन। उसने पेड़ के पत्तों को तोड़कर जितना खा सकता था खा गया। उसे घर की याद आई तो अनायास ही उसके ऑंखों में आँसू झलक आये। वह पेड़ से उतरकर दौड़ने लगा। उसे पता न था कि वह किधर जा रहा है। बस घर पहुंचने की आस थी कि वह एक न एक दिन अपने घर पहुँच जाएँगा।

लघु कहानीकार

पंकज मोदक 

A driver, a boy of twelve or thirteen years old, and the boy's elder brother and a friend of the elder brother boarded a vehicle. Whose vehicle it was. They were going to eat a feast at a wedding by riding in that vehicle. It was night time After a few hours they reached the wedding. After eating the feast, they all kept walking for some time in the wedding. After that, they boarded the vehicle and started going towards the house. The vehicle stopped after covering some distance. Perhaps there was some fault with the vehicle. It was about to be morning after some time. It was now half past four in the night. Everyone got down from the vehicle. The driver observed the vehicle for some time and started trying to fix the vehicle. But he could not fix the vehicle and started looking for a mechanic. After some time it was morning. The driver came to that vehicle and said - I could not find the mechanic. They all started looking here and there. They were in a village where silence had spread. There were many huts built in the village. But apart from him there was no other human being in that village. A trunk was lying near a hut. They raised the cot and the boy and his brother's friend sat on that cot. Liquor and petrol were kept in a big box on the vehicle. The boy's elder brother secretly started gulping down the liquor in the bottles one after the other. When the driver saw it, he also drank some liquor. The boy's elder brother got drunk and started taking off his clothes and went and lay down in front of the wall of the hut wearing panties. The driver also went there and slept. As if they don't care about going home at all. Due to the hot weather, the sun was very strong. The sun was spreading all around and hot winds were blowing. The owner of the vehicle i.e. the friend of the boy's elder brother was getting very angry. He could not control his anger and in a fit of rage poured out the petrol present on the vehicle and set it on fire. The boy got scared seeing this and ran away from there. He kept running till he got away from there. Due to the fire there, both of them died in agony. As soon as the owner of the vehicle started sitting on the cot, a poisonous snake bit him. The owner of the vehicle started trying to escape from here. But his foot hit a stone. In an attempt to control himself, he grabbed hold of a dangling bare wire. After which, due to high voltage current, his life dried up shortly after. That boy would stop and then run, then stop and run again. While doing this, he reached a city. Breathing was going fast. He was tired and had forgotten the way home. He sat under a tree and started looking around fearfully. Lots of time elapsed. The boy spent the night climbing the tree. It's morning The sounds of birds and vehicles started coming. He woke up from sleep. He was very hungry. But he had neither food nor money. He plucked the leaves of the tree and ate as much as he could. When he remembered home, tears appeared in his eyes without any reason. He got down from the tree and started running. He didn't know where he was going. There was just the hope of reaching home that he would reach his home one day or the other.

Short story writer

Pankaj Modak 

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अनजान गांव (Unknown Village)

सुनिदा जो कुछ दिनों पहले नयी शिक्षिका बनी। उसके खुशी का ठिकाना न था। वह बेहद खुश थी। परंतु वह जिस विद्यालय में नियुक्त हुई। वह शहर से काफी दूर था। दूसरे दिन। वह अपने पिता का आशीर्वाद लेकर निकल ही रही थी कि उसके पिता ने कहा - बेटी कुछ छुट्टे रूपये ले जाओं। तुम्हारे काम आएंगे। सुनिदा ने कहा - पिताजी बाहर किसी से छुट्टे रूपये ले लुंगी। उसके बाद वह घर से बाहर निकल गई। वह बस स्टॉप की ओर बढ़ने लगी। कुछ देर बाद वह बस स्टॉप के पास पहुंची। उसने बस पकड़ी और विद्यालय की ओर चल पड़ी। उस विद्यालय के पहले एक अनजान गांव पड़ता हैं। जब सुनिदा ने विद्यालय का नाम स्मार्टफोन के नक्शे पर सर्च किया तो वह आ गया। परंतु विद्यालय से थोड़ी दूर पर स्थित उस अनजान गांव के बारे में नक्शे पर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी या शायद किसी ने जानकारी नहीं छोड़ी थी। यह देखकर उसे थोड़ा आश्चर्य हुआ। कुछ घण्टे बाद वह बस उस गांव से गुजरने लगीं। सुनिदा ने खिड़की से बाहर झांककर देखा तो उसे थोड़ी घबराहट हुई। उस गांव में कोई दुकान न थी। बाहर बैठे लोग सुनिदा को ही देखें जा रहे थे। जैसै- उन लोगों की नजरें सिर्फ़ सुनिदा पर ही टिकी हुई हो।

कपूर का प्रभाव (Effect Of Camphor)

मेरे पिताजी जिनका नाम शंकर था। उनका जन्म भारत देश के एक छोटे से गाँव चन्दाहा मे हुआ था। शंकर जी के पिताजी विजय जी बी. सी.सी.एल में कार्यरत थे। शंकर जी जब बारह वर्ष के थे। विजय जी नशे में धुत होकर आते और शंकर जी के माताजी सुमु देवी को काफी मारते-पीटते। यह देखकर शंकर जी उदास हो जाते थे। शंकर जी का एक दोस्त है- जिसका नाम नारायण था। वे एक ही कक्षा में थे और एक साथ पढ़ाई करते थे । उन्होंने 16 वर्ष की उम्र में 10वीं पास की। उस समय चन्दाहा गाँव में गाड़ी की सम्भावना ना के बराबर थीं । उन दोनों ने, चास नामक प्रखंड के एक कॉलेज में नामांकण कराया। कॉलेज में कार्य पड़ने पर उन दोनों को 15 किलोमीटर पैदल चलकर वहाँ पहुँचन पड़ता था। शंकर जी के पाँच बहनें थीं। जो उनसे उम्र में बड़ी थी। उस समय चन्दाहा के आस-पास कोई कॉलेज न था। गाँव में बेलगाड़ी की सुविधा थी । परंतु उतने दूर न जाती थी। उन्होनें 18 वर्ष की उम्र में 12वीं की की परीक्षा उत्तीर्ण किया। अब वे दोनों पटना के एक विश्वविद्यालय में बी० ए० का नामांकण कराये । शंकर जी के पिताजी कभी - कबार ही काम पर जाया करते थे। बाकि दिन नशे में धुत रहते थे । इसलिए वे बहु

विलुप्त जीव (Extinct Creatures)

पृथ्वी पर हरियाली छाई हुई थी। रोज की तरह लोग अपने‌ काम में जा रहे थे, आ रहे थे। एक दिन प्रसिद्ध विज्ञान संस्था ने एक रिपोर्ट जारी की। जिसमें लिखा था - पेड़ों की संख्या हर वर्ष कम होती जा रही है। जिससे ओजोन परत की क्षति, वायू प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग की समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। इसलिए आपसे अनुरोध है कि पेड़ अधिक से अधिक लगाएं और मनुष्य जीवन को बचाएं। इस रिपोर्ट को पढ़ने के बाद बहुत लोगों ने इसे झूठ समझकर भूल गए, तो कुछ लोगों ने इसे सच मानकर थोड़े डर गए। कुछ दिनों बाद एक व्यक्ति अपनी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग कर रहा था। उसने वह रिपोर्ट पढ़ी। उसने मनुष्य जीवन की अच्छाई के लिए कुछ करने की सोची। वह प्रतिदिन एक पेड़ को रोपता। पानी देता और उस पौधे को देखकर उसका मन खुशी से खिल उठता। वह वर्ष में एक बार जगह-जगह जाकर पर्यावरण को बढ़ावा देने, वायू प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण और जल प्रदूषण को कम करने, पॉलीथिन बैग का इस्तेमाल कम करने के बारे में लोगों को जागरूक करने की कोशिश करता। एक रात उस व्यक्ति के मन में एक ख्याल आया कि क्यों न चिड़ियाघरों में पिंजरों में बंद जीव-जंतुओं को आजाद किया जाए। ज