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बेजान ( Lifeless)


मेरे बड़े भांजे के जिद करने पर मेरे पिताजी ने उसके लिए एक कबूतर का बच्चा खरीद दिया। मेरा भांजा खलने और बदमाशी करने में मग्न रहता था। जिसके कारण वह उस कबूतर पर ध्यान न देता था। भांजे की मां रोजाना उस कबूतर को खाना खिला और पानी पिला देती थी। कुछ दिन बीत गए। एक दिन उस कबूतर को देखकर मेंने सोचा क्यों न उसे उड़ाया जाए। अब हर दिन उस कबूतर को में एक बार उड़ानें लगा। परंतु उड़ानें पर वह उड़ते-उड़ते किसी दीवार से टकरा जाती। इसलिए अब मेंने उसे घर से बाहर ले जाकर उड़ानें लगा। ऐसे ही दिन बीतते चले गए। उस कबूतर को एक प्रकार की बीमारी हो गई थी। जिसके कारण उसके आँखों से खून निकलने लगता था और उसके आँखों पर पीले रंग के धब्बें जम जाते थे। जिसके कारण वह कुछ देख नहीं पाता था। परिवार के लोग मुझे कहते उसे मत उड़ाओं, उसे मत छुओ। परंतु में उनकी बातों को न मानता था। परंतु जब मैनें उसे देखकर यह पाया कि वह देख पाने में असमर्थ है तो मैंने उसे उड़ाना बंद कर दिया। परंतु में उसे दिन में एक बार घूमाने लगा। ठंड का मौसम था। घड़ी पर लगभग दस या ग्यारह बज रहे थे। कुछ समय तक मैनें उसे घुमाया और जमीन पर छायी हुई धूप में रख दिया। उसके चेहरे पर एक मुस्कान थी। जिसे देखकर मुझे अच्छा लग रहा था। दूसरे दिन। सुबह का समय था। मैनें सुना कबूतर मर गया। मुझे विश्वास नहीं हुआ। इसलिए मैं जाँच करने और देखने वहाँ गया। मेंने देखा वह कबूतर जमीन पर बेजान सी पड़ी हुई थी। ठंड के कारण उसका पुरा शरीर अकड़ गया था। मैनें उसे थोड़ा हिलाया-डुलाया। परंतु वह मृत्यु की गोद में सो चुका था। मेंने मन ही मन सोचा। काश! इस कबूतर के बच्चे को अपने माँ से अलग न किया होता तो आज वह अपनी माँ के साथ नीले आसमान में कहीं उड़ रही होती।

लघु कहानीकार
पंकज मोदक 

On the insistence of my elder nephew, my father bought a baby pigeon for him. My nephew used to indulge in pranks and bullying. Because of which he did not pay attention to that pigeon. The nephew's mother used to feed and water that pigeon everyday. Few days passed. One day seeing that pigeon I thought why not fly it. Now every day that pigeon took flights once. But while flying, it would hit a wall while flying. So now I took him out of the house and started flying. Days passed like this. That pigeon had got a kind of disease. Due to which blood used to come out of his eyes and yellow spots used to accumulate on his eyes. Because of which he could not see anything. Family members tell me don't blow it, don't touch it. But I did not believe his words. But when I saw him unable to see, I stopped flying him. But I started walking him once a day. It was cold weather. The clock struck about ten or eleven. For some time I turned it around and put it on the ground in the sunlight. There was a smile on his face. Seeing which I was feeling good. next day. It was morning. I heard the pigeon died. I didn't believe it. So I went there to check and see. I saw that pigeon was lying lifeless on the ground. His whole body was stiff because of the cold. I rocked him a little. But he was asleep in the lap of death. I thought to myself. If only! Had this baby pigeon not been separated from its mother, today it would have been flying somewhere in the blue sky with its mother. 

Short story writer
Pankaj Modak 

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अनजान गांव (Unknown Village)

सुनिदा जो कुछ दिनों पहले नयी शिक्षिका बनी। उसके खुशी का ठिकाना न था। वह बेहद खुश थी। परंतु वह जिस विद्यालय में नियुक्त हुई। वह शहर से काफी दूर था। दूसरे दिन। वह अपने पिता का आशीर्वाद लेकर निकल ही रही थी कि उसके पिता ने कहा - बेटी कुछ छुट्टे रूपये ले जाओं। तुम्हारे काम आएंगे। सुनिदा ने कहा - पिताजी बाहर किसी से छुट्टे रूपये ले लुंगी। उसके बाद वह घर से बाहर निकल गई। वह बस स्टॉप की ओर बढ़ने लगी। कुछ देर बाद वह बस स्टॉप के पास पहुंची। उसने बस पकड़ी और विद्यालय की ओर चल पड़ी। उस विद्यालय के पहले एक अनजान गांव पड़ता हैं। जब सुनिदा ने विद्यालय का नाम स्मार्टफोन के नक्शे पर सर्च किया तो वह आ गया। परंतु विद्यालय से थोड़ी दूर पर स्थित उस अनजान गांव के बारे में नक्शे पर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी या शायद किसी ने जानकारी नहीं छोड़ी थी। यह देखकर उसे थोड़ा आश्चर्य हुआ। कुछ घण्टे बाद वह बस उस गांव से गुजरने लगीं। सुनिदा ने खिड़की से बाहर झांककर देखा तो उसे थोड़ी घबराहट हुई। उस गांव में कोई दुकान न थी। बाहर बैठे लोग सुनिदा को ही देखें जा रहे थे। जैसै- उन लोगों की नजरें सिर्फ़ सुनिदा पर ही टिकी हुई हो।

कपूर का प्रभाव (Effect Of Camphor)

मेरे पिताजी जिनका नाम शंकर था। उनका जन्म भारत देश के एक छोटे से गाँव चन्दाहा मे हुआ था। शंकर जी के पिताजी विजय जी बी. सी.सी.एल में कार्यरत थे। शंकर जी जब बारह वर्ष के थे। विजय जी नशे में धुत होकर आते और शंकर जी के माताजी सुमु देवी को काफी मारते-पीटते। यह देखकर शंकर जी उदास हो जाते थे। शंकर जी का एक दोस्त है- जिसका नाम नारायण था। वे एक ही कक्षा में थे और एक साथ पढ़ाई करते थे । उन्होंने 16 वर्ष की उम्र में 10वीं पास की। उस समय चन्दाहा गाँव में गाड़ी की सम्भावना ना के बराबर थीं । उन दोनों ने, चास नामक प्रखंड के एक कॉलेज में नामांकण कराया। कॉलेज में कार्य पड़ने पर उन दोनों को 15 किलोमीटर पैदल चलकर वहाँ पहुँचन पड़ता था। शंकर जी के पाँच बहनें थीं। जो उनसे उम्र में बड़ी थी। उस समय चन्दाहा के आस-पास कोई कॉलेज न था। गाँव में बेलगाड़ी की सुविधा थी । परंतु उतने दूर न जाती थी। उन्होनें 18 वर्ष की उम्र में 12वीं की की परीक्षा उत्तीर्ण किया। अब वे दोनों पटना के एक विश्वविद्यालय में बी० ए० का नामांकण कराये । शंकर जी के पिताजी कभी - कबार ही काम पर जाया करते थे। बाकि दिन नशे में धुत रहते थे । इसलिए वे बहु

विलुप्त जीव (Extinct Creatures)

पृथ्वी पर हरियाली छाई हुई थी। रोज की तरह लोग अपने‌ काम में जा रहे थे, आ रहे थे। एक दिन प्रसिद्ध विज्ञान संस्था ने एक रिपोर्ट जारी की। जिसमें लिखा था - पेड़ों की संख्या हर वर्ष कम होती जा रही है। जिससे ओजोन परत की क्षति, वायू प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग की समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। इसलिए आपसे अनुरोध है कि पेड़ अधिक से अधिक लगाएं और मनुष्य जीवन को बचाएं। इस रिपोर्ट को पढ़ने के बाद बहुत लोगों ने इसे झूठ समझकर भूल गए, तो कुछ लोगों ने इसे सच मानकर थोड़े डर गए। कुछ दिनों बाद एक व्यक्ति अपनी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग कर रहा था। उसने वह रिपोर्ट पढ़ी। उसने मनुष्य जीवन की अच्छाई के लिए कुछ करने की सोची। वह प्रतिदिन एक पेड़ को रोपता। पानी देता और उस पौधे को देखकर उसका मन खुशी से खिल उठता। वह वर्ष में एक बार जगह-जगह जाकर पर्यावरण को बढ़ावा देने, वायू प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण और जल प्रदूषण को कम करने, पॉलीथिन बैग का इस्तेमाल कम करने के बारे में लोगों को जागरूक करने की कोशिश करता। एक रात उस व्यक्ति के मन में एक ख्याल आया कि क्यों न चिड़ियाघरों में पिंजरों में बंद जीव-जंतुओं को आजाद किया जाए। ज